Sunday 27 September 2015

पितृपक्ष पर्व 28 सितंबर से
अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा प्रकटकर आशीर्वाद प्राप्ति का पवित्रपर्व श्राद्ध 28 सितंबर सोमवार से आरम्भ हो रहा है, इसदिन प्रतिपदा तिथि सुबह 08 बजकर 20 मिनट पर ही आरंभ हो रही है, अतः प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध इसीदिन दोपहर 11बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक के मध्य करना शुभ रहेगा | शास्त्रों-पुराणों में पितृों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पितृो वै जनार्दनः, पितृो वै वेदाः, पितृो वै ब्रह्मः, पितृ ही जनार्दन हैं, पितृ ही वेद है, पितृ ही ब्रह्म हैं, अतः जन्म-जन्मान्तर तक अनेकों योनियों में भटकते हुए जीव जब मनुष्य योनि में आता है तो उसे पितृरुपी जनार्दन के प्रतिश्राद्ध-तर्पण करने का अवसर मिलता है जिससे उसे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी होनेवाले जन्मों में उत्तम लोक और उत्तम योनि प्राप्त हो | जो मनुष्य वर्ष पर्यन्त दान-पुण्य, पूजा-पाठ आदि नहीं करते वै भी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में केवल अपने पितृों का श्राद्ध-तर्पण करके ईष्टकार्यसिद्धि एवं उन्नति प्राप्त कर सकते हैं | एक वर्ष में बारह महीने की बारह अमावस्यायें, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारम्भ की चारों तिथियाँ, मनुवों के आरम्भ की चौदह मन्वादि तिथियाँ, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ, पांच अष्टका, पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने के 96 अवसर हैं जिनमें मनुष्य अपने पूर्जवों के प्रति श्राद्ध तर्पण करके पितृदोष से मुक्ति पा सकता है | जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में पितृदोष हो, उनके लिए तो यह अवसर वरदान की तरह है क्योंकि इन्हीं दिनों पितृ पृथ्वी पर पधारते हैं | श्राद्ध का समय आ गया है ऐसा विचार करके पितृ अपने-अपने कुलों में मन के सामान तीव्र गति से आ पहुचते हैं, और जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है,उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं, उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पुनः पितृलोक चले जाते हैं | किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो श्राद्धपक्ष में उसी तिथि के आने पर अपने पितृ का श्राद्ध करें | पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में करें | एकादशी में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध, शस्त्र, आत्म हत्या, विष, वाहन दुर्घटना,सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप ,वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु से आक्रमण, फांसी लगाकर मृत्य, ज्वरप्रकोप, क्षयरोग, हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले पूर्जवों का श्राद्ध चतुर्दशी को करें | जिन पूर्जवों की तिथि ज्ञात न हो एवं मृत्यु पश्च्यात अंतिम संस्कार न हुआ हो उनका श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को करना चाहिए | सभी पितृों के स्वामी भगवान् विष्णु के शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उतपत्ति हुई है, अतः तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करें |
 पं जय गोविन्द शास्त्री 

Thursday 27 August 2015

शिवशक्ति का कैलाश प्रस्थान दिवस 'श्रावण पूर्णिमा'
माहपर्यंत भगवान शिव के पृथ्वी पर भ्रमण और उन्हें समर्पित श्रावण माह का कल अंतिम दिन है, पूर्णिमा के दिन जब चन्द्र अपनी सम्पूर्ण कलाओं और सहस्रों शीतल रश्मियों से संसार को आच्छादित कर देते हैं, और माँ महालक्ष्मी पाताल लोक के राजा बलि के यहाँ से बलि को रक्षासूत्र बांधकर विष्णु को मुक्त करा लेती हैं तो भगवान् शिव माँ शक्ति और गणों के साथ कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करते हैं | इसप्रकार मोक्षदायिक मायाक्षेत्र में श्रावण कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमापर्यंत शिव के निवास की यह अंतिम तिथि रहती है | इसदिन रुद्राभिषेक करना, पंचाक्षर मंत्र का जाप, जप-तप, पूजा-पाठ और दान्पुन्य विशेष महत्व रहता है | वैदिक ब्राह्मणों द्वारा इसदिन 'श्रावणी उपाकर्म' किया जाता हैं इसलिए वैदिक ब्राह्मण गण इसदिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में पवित्र नदी तालाब तीर्थ या देवालय पहुँच कर हेमाद्रिसंकल्प करते हैं | इस आध्यात्मिक विधान में षठकर्म, तीर्थों का आह्वाहन, संकल्प, पंचगव्य स्नान सहित शिखा सिंचन, नवीन यज्ञोपवीत धारण पश्च्यात विष्णु पूजन करना चाहिए | पुनः प्रजापिता ब्रह्मा, चारोंवेद और ऋषियों का पुरुष सूक्त के मंत्रों द्वारा आवाहन/स्तवन करना चाहिए | विधान पूर्ण होने पर आचार्य के हाथों रक्षावंधन बंधवाया जाता है | जिस स्थान पर सामूहिक व्यवस्था हो वहाँ सभी एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधे | इसदिन ग्रामीण क्षेत्रों में कुल पुरोहित द्वारा रक्षा सूत्र बांधने का विधान है | सभी सनातनधर्मी ब्राह्मण अपनी वाणी की पवित्रता, सत्याचरण, मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर यज्ञोपवीत बदलते हैं | पूजनोपरान्त विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, और समृद्धि की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही इस पूर्णिमा के दिन पर शिवलिंग पर शहद, और पंचामृत का लेप करने से प्राणी कर्ज सेमुक्ति पा लेता है विद्यार्थियों को इसदिन शिवालिंग पर मिश्री और दूध के अमृततुल्य मिश्रण का लेप करते हुए उत्तम विद्या की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करना करना चाहिए |अविवाहित अथवा विवाह में विलंब हो रही महिलाओं को गन्ने के रस से अभिषेक करने चाहिए शिव-शक्ति की कृपा से उनके जीवन में उत्तम दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होगी |    पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 9 July 2015

बृहस्पति का सिंह राशि में प्रवेश बनेगा 'कुंभ' महापर्व योग-
देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्चराशि 'कर्क' की यात्रा समाप्त करके 14 जुलाई की सुबह सिंह राशि में प्रवेश कर रहे हैं, इस राशि पर गुरु लगभग 13 माह रहने के पश्च्यात कन्या राशि में प्रवेश कर जायेंगें | इनके राशि परिवर्तन का प्रभाव भूमंडल पर सभी प्राणियों के कार्य-व्यापार में हानि-लाभ के अतिरिक्त शासन सत्ता और न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है | गुरु ब्रह्म विद्या और ज्ञान के प्रदाता हैं इनके अनंत ज्ञान से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें देवताओं और ग्रहों का गुरु मनोनीत किया | देवगुरु शादी-विवाह, संतान सुख, शिक्षा-प्रतियोगिता में सफलता, न्यायिक प्रक्रिया, आध्यात्मिक गुरुओं, तीर्थ स्थानों, पवित्र नदियों, धार्मिक साहित्यों, अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, लेखकों, कलाकारों एवं वित्तिय संस्थानों में कार्यरत व्यक्तियों के कारक हैं धनु और मीन राशियों के स्वामी गुरु कर्क राशि पर तथा मकर राशि पर नीच संज्ञक होते हैं जन्मकुंडली में ये दूसरे, पाचवें, नवें और ग्यारहवें भाव के लिए अधिक शुभफल कारक होते हैं | जन्मकुंडली में बलवान गुरू के प्रभाव वाले जातक दयालु, दूसरों की सहायता करने वाले, धार्मिक तथा मानवीय मूल्यों को समझने वाले बुद्धिमान होते हैं, ये कठिन हालात में भी विषयों को आसानी से समझ लेने की क्षमता रखते हैं | ऐसे लोग सृजनात्मक कार्य करने वाले होते हैं जिस कारण समाज में इनका विशेष सम्मान रहता है | इसवर्ष बृहस्पति 12/13 सितंबर को सिंह सूर्य और चंद्र के साथ युति करेंगें, जिसके फलस्वरूप महारष्ट्र के गोदावरी तट पर 'त्र्यम्बक' में अतिदुर्लभ 'कुंभ' महापर्व का योग बनायेंगें | ऐसे सुअवसर पर सभी ग्रह आपसी राग-द्वेष त्याग कर मित्रता पूर्ण व्यवहार करते हुए शुभ फलदाई रहेंगे | सिंह राशि पर बृहस्पति के आगमन का शुभा-शुभ फल अन्य सभी राशियों के लिए कैसा रहेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते है
मेष - विद्यार्थियों को शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता, नव विवाहितों के लिए संतान सुख एवं वरिष्ठों के लिए धार्मिक-मांगलिक कार्य का अवसर |
वृष - मानसिक अशांति किंतु कार्यलाभ, जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का शीघ्र निपटारा होगा, सामाजिक कार्यों पर व्यय किंतु प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी |
मिथुन - भाईयों में असहमति/अविश्वास का माहौल न बनने दें, विदेश यात्रा एवं बुजुर्गों को पौत्र सुख की प्राप्ति, आय के साधन बढेंगें |
कर्क - कार्यों में सफलता प्राप्त होगी, धन लाभ एवं पदोन्नति के अवसर मिलेंगे, तीर्थाटन एवं सामाजिक कार्यों पर धन खर्च होगा |
सिंह - मान सम्मान एवं प्रभाव की वृद्धि, उच्चाधिकारियों से सहयोग मिलेगा, स्वास्थ्य के प्रति सजक रहे, अधिक खर्च से बचे होगा |
कन्या - भाग-दौड की अधिकता से तनाव बढ़ेगा, शादी-विवाह में बज़ट से अधिक व्यय, माकन-वाहन का सुख, मुकदमों में विजय, कर्ज से मुक्ति |
तुला - आय के अनेक साधन बनेंगे, परिवार के बड़ों से सहयोग, संतान संबंधी चिंता से मुक्ति किंतु गुप्त शत्रुओं से सावधान रहे, नौकरी में पदोन्नति |
वृश्चिक - नौकरी में नए अनुबंध, प्रमोशन एवं स्थान परिवर्तन योग, पैत्रिक संपत्ति से लाभ, भौतिक सुख तथा मकान-वाहन के क्रय का योग |
धनु - शिक्षा प्रतियोगिता में चल रही असफलता की समाप्ति, कार्य क्षेत्र में प्रभाव बढ़ेगा, संतान सुख तथा चिंता दूर होगी, यात्रा-देशाटन के योग |
मकर - आपके द्वारा लिए गए निर्णय समाज में सराहनीय होंगे, षड्यंत्र का शिकार होने से बचें, स्वास्थ्य पर ध्यान दें, विवादित मामले आपस में हल करें |
कुंभ - शादी/विवाह एवं व्यापार के क्षेत्र में आ रही रुकावटें दूर होंगी, शिक्षा एवं प्रतियोगिता से लाभ, सामजिक पद-प्रतिष्ठा बढेगी |
मीन - गोचर बृहस्पति का प्रभाव आशांति एवं उलझने देगा, ऋण-रोग और गुप्त शत्रुओं से बचें, कार्य व्यापार में उन्नति | खान-पान पर अधिक ध्यान दें |

अशुभ गुरु को प्रसन्न करने के सरल उपाय-
यदि गोचर बृहस्पति आपकी राशि के लिए अशुभ हैं तो, गरीब एवं ज़रूरत मंद विद्यार्थियों की मदद करें, आम, बरगद, पीपल एवं अनार का वृक्ष लगाएं |महिलाएं कार्य उन्नति एवं उत्तम दामपत्य जीवन के लिए बृहस्पतिवार के व्रत रखें | सभी स्त्री/पुरुष बृहस्पति का गायत्री मंत्र- ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरूः प्रचोदयात् | का जप प्रतिदिन स्नान के बाद ११ बार जपें | पं जयगोविन्द शास्त्री




Monday 22 June 2015

'दुःख-दारिद्र्य से मुक्ति दिलाने आता है, मलमास'
17 जून से आरम्भ हो चुका मलमास अगले महीने की 16 जुलाई तक रहेगा | मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार जिस चांद्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसे ही मलमास
या पुरुषोत्तम कहा गया है, जो 28 से 36 माह के मध्य एक बार आता है ! सिद्धांत ग्रंथो के अनुसार सूर्य का बारह राशियों पर भ्रमण में जितना समय लगता
है उसे सौर वर्ष कहा गया है, जिसकी अवधि 365 दिन 6 घंटे और 11 सेकेण्ड की होती है, इन्हीं बारह राशियों का भ्रमण चंद्रमा प्रत्येक माह करते हैं जिसे चांद्र
मास कहा गया है | चंद्रमा एक वर्ष में 12 बार सभी राशियों पर भ्रमण करते हैं जिसे चांद्र वर्ष कहा जाता है | चंद्रमा का यह वर्ष 354 दिन और लगभग 09 घंटे
का होता है ! परिणाम स्वरुप सूर्य और चन्द्र के भ्रमण काल में एक वर्ष में 10 दिनों का अंतर आ जाता है इस प्रकार सूर्य और चन्द्र के वर्ष का समीकरण ठीक
करने के लिए अधिक मास का जन्म हुआ ! ये बचे हुए दिन लगभग तीन वर्ष में 31 दिन से भी अधिक होकर अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के रूप में
जाने जाते हैं ! पौराणिक कथा है कि आदिकाल काल में जब सूर्य एवं चंद्र की यात्रा के मध्य वर्ष में 10 दिनों का अंतर पडने लगा तो उसे विशुद्ध करने एवं वैदिक
गणितीय प्रक्रिया को ठीक करने के लिए अधिक मास का जन्म हुआ | स्वामी रहित होने के कारण मलमास की सर्वत्र निंदा होने लगी | अपनी निंदा एवं उपहास से
दुखी होकर वह सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के पास गये और लोंगों द्वारा उपहास-तिरस्कार किये जाने की अपनी व्यथा बताई मलमास की करूँ व्यथा से द्रवित होकर परमेश्वर
श्री कृष्ण ने कहा कि मलमास तुम दुखी न हो आज से मै ही तुम्हारा स्वामी हूँ इसलिए आज से तुम 'पुरुषोत्तम मास' के नाम से जाने जाओगे | तुम्हारे माह के
मध्य किये गये सभी कार्य केवल मेरे ही निमित्त होंगें | अतः किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए अनुष्ठान का आयोजन, विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, नींव-पूजन,
गृह-प्रवेश आदि सांसारिक कार्य सर्वथा वर्जित रहेंगें | जो प्राणी इस मास में मेरा भजन-पूजन करेगा अथवा मेरी अमृतमयी श्रीमद्भागवत् महापुराण की कथा सुनेगा
उसे मेरा उत्तमलोक प्राप्त होगा मेरे सहस्त्र नाम, पुरुष सूक्त का पाठ, वेद मंत्रों का श्रवण, गौ दान, पौराणिक ग्रंथो का दान, वस्त्र, अन्न और गुड़ का दान करना
उत्तम फलदायी रहेगा !साधक को चाहिए कि इस मास के मध्य तामसिक भोजन और मांस मदिरा से परहेज करें ! केवल मेरी कथा ही सभी कष्टों से मुक्ति
दिलाने के लिए पर्याप्त रहेगी, तभी से मलमास को पुरुषोत्तम मास के रूप में भी जाना जाता है ! पं. जयगोविन्द शास्त्री

Monday 25 May 2015

गंगा दसहरा का क्या महत्व- पं जयगोविंद शास्त्री
आदिकाल में ब्रह्मा जी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से निवेदन किया कि हे पराशक्ति ! आप सम्पूर्ण लोकों का आदि कारण बनों, मैं तुमसे ही संसार की
सृष्टि आरम्भ करूँगा | ब्रह्मा जी के निवेदन पर मूलप्रकृति- गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, ब्रह्मविद्या उमा, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात
रूपों में अभिव्यक्त हुईं | इनमें सातवीं 'पराप्रकृति 'धर्मद्रवा' को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित देखकर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपने कमण्डलु में धारण कर लिया,
वामन अवतार में बलि के यज्ञ के समय जब भगवान श्रीविष्णु का एक चरण आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ तब
ब्रह्मा ने कमण्डलु के जल से श्रीविष्णु के चरणों की पूजा की | पाँव धुलते समय उस चरण का जल हेमकूट पर्वत पर गिरा, वहाँ से भगवान शंकर के
पास पहुँचकर वह जल गंगा के रूप मे उनकी जटा में स्थित हो गया सातवीं प्रकृति गंगा बहुतकाल तक भगवान शंकर की जटा में ही भ्रमण करती
रहीं, तत्पश्च्यात सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने अपने पूर्वज राजा सागर की दूसरी पत्नी सुमति के साठ हज़ार पुत्रों का विष्णु के अंशावतार
कपिल मुनि के श्राप से उद्धार करने के लिए शंकर की घोर आराधना की | तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर ने गंगा को पृथ्वी पर उतारा | इसप्रकार
'ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशमी बुध हस्तयोः | व्यतिपाते गरा नन्दे कन्या चन्द्रे बृषे रवौ | हरते दश पापानि तस्माद् दसहरा स्मृता || अर्थात- ज्येष्ठ
मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि बुधवार, हस्त नक्षत्र में दस प्रकार के पापों का नाश करने वाली गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ | उस समय गंगा
तीन धाराओं में प्रकट होकर तीनों लोकों में गयीं और संसार में त्रिसोता के नाम से विख्यात हुईं | गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी दस प्रकार के दोषों-
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल-कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है, यही नही अवैध संबंध, अकारण जीवों को कष्ट
पहुंचाने, असत्य बोलने व धोखा देने से जो पाप लगता है, वह पाप भी गंगा 'दसहरा' के दिन गंगा स्नान से धुल जाता है | स्नान करते समय माँ
गंगा का इस मंत्र 'विष्णु पादार्घ्य सम्पूते गंगे त्रिपथगामिनी ! धर्मद्रवीति विख्याते पापं मे हर जाह्नवी | द्वारा ध्यान करना चाहिए और डुबकी लगाते
समय श्रीहरि द्वारा बताए गये इस सर्व पापहारी मंत्र- ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः | जप करते रहने से तत्क्षण लाभ मिलता है |

Thursday 14 May 2015

शनैश्चर जयंती १७ मई को
मृत्युलोक के दंडाधिकारी शनिदेव का जन्मोत्सव पर्व प्रत्येक वर्ष में ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है | पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका जन्म
सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया से हुआ, शनिदेव जब माँ के गर्भ में थे तब माँ छाया भगवान शिव की घोर तपस्या में लीन थी उन्हें अपने खान-पान तक की सुध
नहीं थी | छाया के तप के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु शनि भी जन्म लेने के पश्च्यात पूर्णतः शिवभक्ति में लीन रहने लगे एकदिन उन्होंने सूर्यदेव से कहा कि पिता
श्री हर बिभाग में आपसे सात गुना ज्यादा होना चाहता हूँ, यहाँतक कि आपके मंडल से मेरा मंडल सात गुना अधिक हो, मुझे आपसे अधिक सात गुना शक्ति
प्राप्त हो, मेरे वेग का कोई सामना नही कर पाये, चाहे वह देव, असुर, दानव, या सिद्ध साधक ही क्यों न हो | आपके लोक से मेरा लोक सात गुना ऊंचा रहे,
मुझे मेरे आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन हों और मैं भक्ति-ज्ञान से पूर्ण हो जाऊं | पुत्र शनि के उच्च विचारों से प्रसन्न हो सूर्यदेव ने कहा वत्स !
तुम अविमुक्त क्षेत्र काशी चले जाओ और वहीँ शिव की तपस्या करो तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगें ! पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर शनिदेव काशी गये और
शिवलिंग बनाकर अखण्ड शिव आराधना करने लगे | तपस्या से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और उन्हें ग्रहों में सर्वोपरि स्थान तो दिया ही साथ ही मृत्युलोक
का न्यायाधीश भी नियुक्त किया तथा न्यायिक प्रक्रिया का कठोरता से पालन करने के लिए इनके नाम की शाढेसाती और ढैया का वरदान भी दिया दिया
इसमें शाढेसाती की अवधि सत्ताईस सौ दिन और ढैया की अवधि नौ सौ दिन घोषित की | तबसे लेकर आजतक शनिदेव की ढैया और साढ़ेसाती का डर लोंगों
में व्याप्त है जिसका जीवन में शुभाशुभ प्रभाव व्यक्ति के आचरण और कर्म के अनुसार पड़ता है पिता सूर्य ने इन्हें मकर और कुंभ राशि के साथ-साथ अनुराधा,
पुष्य एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का अधिपति बनाया | शनिदेव ने जिस शिवलिंग की स्थापना की थी आज वही नवें ज्योतिर्लिंग 'श्रीकाशीविश्वनाथ' के नाम से जाने
जाते हैं ! भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए प्राणियों को शनि स्तोत्र, शनिकवच, शनि के वैदिक मंत्र का पाठ करना चाहिए अपने बड़ों के प्रति सम्मान रखना
चाहिए अहिंसा, उदारता, दयालुता, दया और सेवाभाव रखना ही शनिदेव की कृपा पाने के सरल उपाय हैं ! इनके जन्मदिन पर वस्त्र और अन्नदान का विशेष महत्व
रहता है इसदिन शमी अथवा पीपल के वृक्ष का रोपण करने नौ ग्रहों से सम्बंधित सभी कष्ट दूर हो जाते हैं | पं जयगोविन्द शास्त्री

Friday 8 May 2015

अपरा एकादशी व्रत' अधमाधम पापों से मुक्ति
पौराणिक मान्यताओं कें आधार पर सनातम धर्म में एकादशी तिथि के व्रत-पूजन का सर्वाधिक महत्व बताया गया है, 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भी परमेश्वर श्रीकृष्ण
ने इस तिथि को अपने समान बलशाली बताया है | एक वर्ष में चौबीस एकादशी होती हैं, किन्तु जब पुरुषोत्तम मास लगता है तो इनकी संख्या छब्बीस हो
जाती है !सभी एकादशियों में अपने ही नाम के अनुसार पुण्यफल देने का सामर्थ्य है | वर्तमान ज्येष्ठ कृष्णपक्ष की एकादशी को 'अपरा' या 'अचला' एकादाशी
के नाम से जाना जाता है पद्मपुराण के 'उत्तरखण्ड' में इस व्रत का विस्तार से वर्णन मिलता है | इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्महत्या, गौहत्या, गोत्रहत्या,
भ्रूण करने से, माप-तोल में धोखा देने से, भू‍त-प्रेतयोनि, परनिंदा का पाप, परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, चोरी जैसे पाप शीघ्र समाप्त हों जाते हैं !
धर्मराज युधिष्टिर को समझाते हुए भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु 'अपरा' एकादशी का व्रत करने से वे
भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं | जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं, किन्तु 'अपरा' एकादशी का व्रत करने से
वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं, हे | धर्मराज, जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तटपर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त
होता है, वही 'अपरा' एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर राशि में सूर्य की यात्रा में प्रयाग तीर्थ के स्नान से, महाशिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि
के बृहस्पति में गोदावरी नदी के स्नान से, केदारनाथ के दर्शन तथा बद्रीनाथ के दर्शन करने से, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान और स्वर्णदान करने से, गौदान से
जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है | यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि,
पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है | अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना
चाहिए। इस तिथि पूर्णतः व्रत रखकर को षोडशोपचार बिधि से भगवान वामन की पूजा करनी चाहिए पश्च्यात अगले दिन ब्राह्मण एवं भूखे लोगों को भोजन
कराकर व्रत की पारणा करने से प्राणी भौतिक सुखों को भोगता हुआ मरणोपरांत गोलोकवासी होता है | पं जयगोविन्द शास्त्री

Monday 4 May 2015

अमावस्या का क्या महत्व..?
अमावस्या अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धारुपी नैवेद्य अर्पित करने की महत्वपूर्ण तिथि है | श्रीश्वेतवाराहकल्प में इसतिथि का निर्धारण पूर्णरूप से, पितृ श्राप
से मुक्ति, अशुभ कर्मों के प्रायश्चित, उग्रकर्म जैसे मारण, मोहन, उच्चाटन एवं स्तम्भन आदि के लिए किया गया है | इस तिथि को सूर्य-चन्द्रमा एक ही
राशि में आ जाते हैंजिसके फलस्वरूप चंद्र क्षीण एवं अदृश्य रहते है | मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार किसी भी मांगलिक कार्य के लिए सूर्य, चंद्र और बृहस्पति का
स्वस्थ तथा शुभ प्रभावी रहना अति आवश्यक माना गया है | चूँकि अमावस्या को चंद्र का उदय नहीं होता, इसीलिए इसतिथि को शुभकार्यों के लिए वर्ज्य
माना गया है | श्राद्ध-तर्पण के लिए अति पुण्यदायी इस तिथि के विषय में एक पौराणिक कथा है कि, देवताओं के पितृगण, जो पितृलोक में सोमपथ और
अग्निष्वात नाम से जाने जाते हैं उनकी मानसी कन्या अच्छोदा ने एक बार देवताओं के एक हज़ार वर्षतक घोर तपस्या की | उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर
देवताओं के समान अतिसुंदर पितृगण पुष्प मालाओं तथा सुगन्धित पदार्थों से सुसज्जित होकर अच्छोदा को वरदान देने के लिए प्रकट हुए, ये सभी पितृगण
युवा अमिततेजस्वी, परम बलशाली और कामदेव के समान सुंदर थे | इनमें  अमावसु नाम के एक सुंदर पितर को देख कर अच्छोदा अतिशय कामातुर होकर
प्रणय निवेदन की याचना करने लगीं किन्तु अमावसु ने अच्छोदा की याचना पर अनिच्छा प्रकट कर कहा कि मेरी हाड़-मांस से निर्मित इस नश्वर शरीर में
कोई रुचि नहीं हैं आप मुझे क्षमा करें | अमावसु के इस वैराज्ञपूर्ण जवाब से अच्छोदा लज्जित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं | तभी आकाश से देवता और पितर
गण अमावसु के अनुपम धैर्य की सराहना करने लगे और सर्वसम्मति से उस तिथि को अमावसु के नाम पर रख दिया जिसे हम अमावस्या के नाम से जानते
हैं | अमावसु का धर्म अक्षुण रहा और यह तिथि पितृगणों को अति प्रिय हुई | सभी देवतावों और पितृगणों ने वरदान दिया कि, जो भी प्राणी इस तिथि को
अपने पितरों को श्राद्ध-तर्पण करेगा वह सभी पापों एवं श्रापों से मुक्त हो जाएगा | उसके घर परिवार में सबप्रक्रार की सुख शांति रहेगी | पं जयगोविन्द शास्त्री

Friday 24 April 2015

बगलामुखी जयंती
बगलामुखी जयंती और रवि-पुष्य योग का अद्भुत संयोग २६ अप्रैल को |
भगवान शिव द्वारा प्रकट की गई दस महाविद्याओं में प्रमुख आठवीं महाविद्या माँ 'बगला' मुखी का प्राकट्य पर्व वैशाख शुक्ल अष्टमी 26 अप्रैल रविवार को
मनाया जाएगा | इसदिन दोपहरबाद 03 बजकर 53 मिनट तक पुष्य नक्षत्र भी है अतः सभी कार्यों में सफलता दिलाने वाला बलवान रवि-पुष्य योग भी निर्मित
हो रहा है ! इस योग में माँ की आराधना तथा दान-पुण्य, जप-तप का फल अमोघ रहेगा | जो लोग अनेकों समस्याओं, कष्टों एवं संघर्षों से लड़कर हताश हों
चुके हों, या जिनके जीवन में निराशा ने डेरा डाल रखा है उन लोगों को सफलता देने के लिए माँ बगलामुखी प्रतिक्षण तत्पर रहती हैं ये अपने भक्तों के अशुभ
समय का निवारण कर नई चेतना का संचार करती है | इनमे संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं | आदिकाल से ही इनकी साधना शत्रुनाश, वाकसिद्धि,
कोर्ट-कचहरी के मामलों में विजय, मारण, मोहन, स्तम्भन और उच्चाटन जैसे कार्यों के लिए की जाती रही है | इनकी कृपा से साधक का जीवन हर प्रकार
की बाधाओं से मुक्त हो जाता है |माँ रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजती हैं और रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं इनकी सर्वाधिक आराधना
रानीतिज्ञ चुनाव जीतने और अपने शत्रुओं को परास्त करने में अनुष्टान स्वरूप करवाते हैं । इनके प्रकट होने की कथा है कि एकबार पूर्वकाल में महाविनाशक्
तूफ़ान से सृष्टि नष्ट होने लगी चारों ओर हाहाकार मच गया | प्राणियों की रक्षा करना असंभव हो गया यह महाविनाशक तूफान सब कुछ नष्ट करता हुआ आगे
बढ़ता जा रहा था, जिसे देखकर पालनकर्ता विष्णु चिंतित हो शिव को स्मरण करने लगे, शिव ने कहा कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक
नहीं सकता अतः आप शक्ति का ध्यान करें, विष्णु जी ने 'महात्रिपुरसुंदरी' को ध्यान द्वारा प्रसन्न किया | देवी विष्णु जी की साधना से प्रसन्न हो सौराष्ट्र क्षेत्र की
हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती हुई प्रकट हुई, और अपनी शक्ति के द्वारा उस महाविनाशक् तूफ़ान को स्तंभित कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया तब सृष्टि
का विनाश रुका ! माँ का 36 अक्षरों वाला यह मंत्र 'ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ  स्वाहा' |
शत्रुओं का सर्वनाश कर अपने साधक को विजयश्री दिलाकर चिंता मुक्त कर देता है ! मंत्र का जप करते समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखें, मंत्र पीले वस्त्र
पीले आसन और हल्दी की माला का ही प्रयोग करें जप करने से पहले बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करें |पं. जय गोविन्द शास्त्री

Friday 17 April 2015

अक्षुण फलदाई स्वयंसिद्ध मुहूर्त 'अक्षय तृतीया' 21अप्रैल को
'न क्षयः इति अक्षयः' अर्थात - जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है | सभी वैदिक ग्रंथों ने बैसाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को 'अक्षय' तृतीया माना है |
मुहूर्त ज्योतिष के अनुसार तिथियों का घटना-बढ़ना, क्षय होना, चान्द्रमास एवं सौरमास के अनुसार निश्चित रहता है, किन्तु 'अक्षय' तृतीया का कभी भी क्षय
नहीं होता ! श्रीश्वेत वाराहकल्प के वैवस्वत मन्वन्तर में सत्ययुग के आरम्भ की इस अक्षुण फलदाई तिथि को मानव कल्याण हेतु माता पार्वती ने बनाया था |
वे कहती हैं कि जो स्त्री/पुरुष सब प्रकार का सुख चाहतें हैं उन्हें 'अक्षय' तृतीया का व्रत करना चाहिए | इस तृतीया के व्रत के दिन नमक नहीं खाना चाहिए,
व्रत की महत्ता बताते हुए माँ पार्वती कहती हैं, कि यही व्रत करके मैं प्रत्येक जन्म में भगवान् शिव के साथ आनंदित  रहती हूँ ! उत्तम पति की प्राप्ति के
लिए भी हर कुँवारी कन्या को यह व्रत करना चाहिए ! जिनको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही हो वे भी यह व्रत करके संतान सुख ले सकती हैं | देवी इंद्राणी ने
यही व्रत करके 'जयंत' नामक पुत्र प्राप्त किया था | देवी अरुंधती यही व्रत करके अपने पति महर्षि वशिष्ट के साथ आकाश में सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त
कर सकीं थीं ! प्रजापति दक्ष की पुत्री रोहिणी ने यही व्रत करके अपने पति चन्द्र की सबसे प्रिय रहीं ! उन्होंने बिना नमक खाए यह व्रत किया था ! प्राणी को
इस दिन झूट बोलने और पाप कर्म करने से दूर  रहना चाहिए | जो प्राणी किसी भी तरह का यज्ञ, जप-तप, दान-पुण्य करता है उसके द्वारा किये गये सत्कर्म
का फल अक्षुण रहेगा | भूमिपूजन, व्यापार आरम्भ, गृहप्रवेश, वैवाहिक कार्य, यज्ञोपवीत संस्कार, नए अनुबंध, नामकरण आदि जैसे सभी मांगलिक कार्यों के लिए
अक्षय तृतीया वरदान की तरह है | इसदिन रोहिणी नक्षत्र का आरम्भ दोपहर 11 बजकर 57 मिनट पर हो रहा है उससमय अभिजित मुहूर्त भी रहेगा | इसलिए
रोहिणी नक्षत्र के संयोग से दिन और भी शुभ रहेगा | प्राणियों को इसदिन भगवान विष्णु की लक्ष्मी सहित गंध, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धुप, दीप नैवैद्य आदि से
पूजा करनी चाहिए ! अगर भगवान् विष्णु को गंगा जल और अक्षत से स्नान करावै, तो मनुष्य राजसूय यज्ञ के फल कि प्राप्ति होती है | शास्त्रों में इसदिन
वृक्षारोपण का भी अमोघ फल बताया गया है जिसप्रकार अक्षय तृतीया को लगाये गये वृक्ष हरे-भरे होकर पल्लवितपुष्पित होते हैं उसी प्रकार इसदिन वृक्षारोपण
करने वाला प्राणी भी कामयाबियों के चरम पर पहुंचता है ! पं जयगोविंद शास्त्री

Wednesday 15 April 2015

हर इंसान के शरीर की अपनी एक गंध होती है | ज्योतिष शास्त्र के
अनुसार यही अलग-अलग गंध अलग-अलग व्यक्तियों के व्यवहार
और भाग्य की सूचक भी होती है|

Sunday 12 April 2015

'देवताओं का अभिजित मुहूर्त आरम्भ, सूर्यदेव की मेष संक्रान्ति 14 अप्रैल को
संवत्सर की बारह संक्रातियों में प्रमुख मेष संक्रांति 14 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 45 मिनट से आरम्भ हों जायेगी | इसी के साथ ही मांगलिक कार्यों के
लिए अशुभ माना जाने वाला खरमास समाप्त हो जाएगा | सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ ही देवताओं का 'चक्रसुदर्शन मुहूर्त' आरम्भ हों जाएगा यही
दक्षिणायन सूर्य का मध्य भी होता है | ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस राशि के आने पर सूर्य अपनी सर्वोच्च शक्तिओं से संपन्न रहते हैं अतः इस अवधि
के मध्य जन्म लेने वाले जातक अपनी कामयाबियों के बीच आरहे कष्टों-संघर्षों को परास्त करके लक्ष्य तक पहुचते हैं और अपनी अलग पहचान बनाने में
सफल रहते हैं | यह संक्राति मंगलवार को मंगल के ही नक्षत्र धनिष्ठा और शुभ योग में पड़ रहा है, इसलिए सूर्य और मंगल का यह योग और भी प्रभावकारी
सिद्ध होगा | इस अवधि में किया जाने वाला दान-पुण्य, जप-तप, पूजा-पाठ का फल अक्षुण रहता है | भगवान कृष्ण ने एक हजार वर्ष तपस्या करके सूर्य से 'सूर्यचक्र'
वरदान स्वरुप प्राप्त किया था ! भगवान राम नित्य-प्रति सूर्य की उपासना करते थे | महर्षि अगस्त ने उन्हें सूर्य का प्रभावी मंत्र आदित्य ह्रदयस्तोत्र की दीक्षा
दी थी | ब्रह्मा जी इन्हीं के सहयोग से श्रृष्टि का सृजन करते हैं | शिव का त्रिशूल, नारायण का चक्रसुदर्शन और इंद्र का बज्र भी सूर्य के तेज से ही बना |
अर्घ्य देने मात्र से ही सूर्य प्रसन्न हों जाते हैं ! इनके उदय होते ही प्रतिदिन इंद्र पूजा करते हैं, दोपहर के समय यमराज, अस्त के समय वरुण और अर्धरात्रि में
चन्द्रमा पूजन करते हैं | विष्णु, शिव, रूद्र, ब्रह्मा, अग्नि, वायु, ईशान आदि सभी देवगण रात्रि कि समाप्ति पर ब्रह्मवेला में कल्याण के लिए सदा सूर्य की ही
आराधना करते हैं | इसीलिए इन सभी देवों में सूर्य का ही तेज व्याप्त है, इन्हें गुड़हल अथवा मंदार पुष्प की माला सर्वाधिक प्रिय है ! इसके अतिरिक्त
कनेर, बकुल, मल्लिका, के पुष्प ताबे के पात्र में जल के साथ सूर्यार्घ्य देने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं ! मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, बृश्चिक, धनु
एवं कुंभ राशि वालों के लिए सूर्य की मेष संक्रांति मान-सम्मान पद प्रतिष्ठा की वृद्धि कराएगी ! नए कार्य और अनुबंध के योग बनेगें ! बृषभ, कन्या, तुला,
मकर और मीन राशि वालों के लिए मिश्रित फल कारक ही रहेगी ! पं जयगोविंद शास्त्री

Wednesday 8 April 2015

बृहस्पति हुए मार्गी 08अप्रैल
बृहस्पति चार महीने बाद 8अप्रैल की रात्रि 10बजकर 23मिनट पर मार्गी हो रहे हैं, ये 8दिसंबर 2014 को वक्री हुए थे | बृहस्पति का वक्री-मार्गी होना ज्योतिष जिज्ञासुओं
के लिए बड़ीघटना के रूप में माना जाता है, क्योंकि जातकों की जन्मकुंडलियों में इनकी शुभ स्थिति जीवात्मा को आत्मबोध की ज्योति प्रदान करती है मार्गी रहने पर गुरु
प्राणियों की बुद्धि को सुचारू रूप से सही दिशा में चलाते है किन्तु वक्री होने पर मन-मस्तिस्क में भय-भ्रम और विषाद पैदा कर देतें हैं | वेदों में इनके महत्व को दर्शाते हुए
कहा गया है कि 'बृहस्पतिः प्रथमं जायमानो महो ज्योतिष: परमे व्योम | सप्तास्यस्तुविजातो रवेण वि सप्तरश्मिरधमत्तमांसि ||
अर्थात - बृहस्पति आकाश के उच्चतम स्तर पर स्थित होकर सभी दिशाओं से, सप्त रश्मियों से, अपनी ध्वनि से, हमें आच्छादन करने वाले अन्धकार को पूर्ण तया दूर
करते हैं ये सुंदर, पीतवर्ण, बृहद शरीर, भूरेकेश वाले अपने याचकों और आराधकों को वांछित फल प्रदान करने वाले देवता है | शादी-विवाह, संतान सुख, मांगलिक कार्यों,
आद्ध्यात्मिक एवं शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में इनका विशेष योगदान रहता है | कुंडली में ये अकारक हों या वक्री अथवा किसी भी तरह से दोषयुक्त हों तो दोष शान्ति कराना
उत्तम रहता है | ज्योतिष शास्त्र में इन्हें साधु-संतों, आध्यात्मिक गुरुओं, तीर्थ स्थानों, मंदिरों, पवित्र नदियों तथा पवित्र पानी के जल स्तोत्रों, धार्मिक साहित्य तथा पीपलवृक्ष
का कारक माना गया है | इसके अतिरिक्त इन्हें अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, वित्तिय संस्थानों में कार्य करने वाले व्यक्तियों, लेखकों, कलाकारों तथा बैंकिंग सेवा का
भी कारक माना जाता है | ये धनु और मीन राशियों में स्वामी हैं अपनी उच्च राशि कर्क में स्थित होकर सर्वाधिक बली हो जाते हैं और मकर राशि में इन्हें नीच राशिगत
होने की संज्ञा प्राप्त है बृहस्पति दूसरे, पाचवें, नवें और ग्यारहवें भाव के कारक होते हैं ये शिक्षा, संतान तथा स्त्री की कुंडली में पति के भी कारक माने गए हैं | बली गुरू
के प्रभाव वाले जातक दयालु, दूसरों का ध्यान रखनेवाले, धार्मिक तथा मानवीय मूल्यों कोसमझने वाले बुद्धिमान होते हैं ये कठिन हालात में भी विषयों को भी आसानी से
समझ लेने की क्षमता रखते हैं | ऐसे जातक अच्छे तथा सृजनात्मक कार्य करने वाले होते हैं तथा इस कारण समाज में इनका एक विशेष आदर होता है | स्टॉक मार्केट एवं
कमोडिटी के सेक्टर्स के निवेशकों के लिए मार्गी होना और भी उत्तम रहेगा विशेष करके बैंक निफ्टी, बीमा, आई टी, शैक्षणिक संस्थानों, गैस, फार्मा और आभूषणों के सेक्टर्स
के निवेशकों के लिए शुभ संकेत हैं ! कर्क, तुला, बृश्चिक और मीन राशियों के लिए उत्तम, मेष, बृषभ, मिथुन, कन्या तथा मकर राशियों के लिए मध्यम फलदाई रहेंगें |
सिंह, धनु और कुंभ राशि वालों के मिला-जुला प्रभाव् ही रहेगा ! बृहस्पति की कृपा पाने के लिए प्रतिदिन स्नान के बाद ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः मंत्र का जप 11 बार
करना श्रेयष्कर रहेगा | पं जयगोविंद शास्त्री

     

Thursday 26 March 2015

शक्तितत्व की पूजा का दिन 'दुर्गाष्टमी'
महादैत्य महिसासुर का वध करने के लिए देवताओं के तेज से प्रकट होने वाली माँ दुर्गा अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दंड, शक्ति,
खड्ग, ढाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश, और चक्र धारण करती है ! नवरात्र के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है, दैत्यों का संहार करते
समय माँ ने कहा, 'एकै वाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा' ! अर्थात- इस संसार में एक मै ही हूँ दूसरी और कोई शक्ति नहीं ! सभी चराचर जगत जड़-चेतन, दृश्य-अदृश्य
रूपों में मै ही हूँ ! मैं सृष्टि सृजन के समय भवानी, युद्ध क्षेत्र में दुर्गा, क्रोध के समय काली और जीवात्माओं की रक्षा एवं उनके पालन के समय विष्णु बन जाती हूँ ! सभी
नारियों में स्त्रीतत्व रूप में मैं ही हूँ ! इसलिए नारी का सम्मान करना मेरी पूजा करने जैसा है ! माँ पृथ्वी पर कन्याओं के रूप में विचरण करती हैं ! जिनमे दो वर्ष की कन्या
को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या को अ+उ+म त्रिदेव-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी,
नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के समान मानी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है ।
दुर्गा सप्तशती में कहागया है कि 'कुमारीं पूजयित्या तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्' अर्थात- दुर्गापूजन से पहले कुवांरी कन्याका पूजन करने के पश्च्यात ही माँ दुर्गा का पूजन करें ! भक्तिभाव से की गई एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग, तीन की चारों पुरुषार्थ, और राज्यसम्मान,पांच की पूजा से -बुद्धि-विद्या, छ: की पूजा से
कार्यसिद्धि, सात की पूजा से परमपद, आठ की पूजा अष्टलक्ष्मी और नौ कन्या की पूजा से सभी एश्वर्य की प्राप्ति होती है। पुराण के अनुसार इनके ध्यान और मंत्र इसप्रकार हैं !
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम् । नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्। जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि । पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
कुमार्य्यै नम:, त्रिमूर्त्यै नम:, कल्याण्यै नमं:, रोहिण्यै नम:, कालिकायै नम:, चण्डिकायै नम:, शाम्भव्यै नम:, दुगायै नम:, सुभद्रायै नम: !!
इन दुर्गारुपी कन्याओं का पूजन करते समय पहले उनके पैर धुलें पुनः पंचोपचार बिधि से पूजन करें और तत्पश्च्यात सुमधुर भोजन कराएं और प्रदक्षिणा करते हुए यथा शक्ति
वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें ! इस तरह महाष्टमी/नवमी के दिन कन्याओं का पूजन करके भक्त माँ दुर्गा की कृपा पा सकते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Wednesday 25 March 2015

नूतन संवत् 'कीलक' में राजा शनि और मंत्री मंगल
कीलक नामक बयालीसवां विक्रमी संवत् 2072 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का आरम्भ आज दोपहर 3बजकर 05 मिनट पर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र एवं शुक्ल योग
में हो रहा है उस समय क्षितिज पर कर्क लग्न का उदय हों रहा होगा, परन्तु सम्वत्सर का संकल्पमान सूर्योदय कालीन तिथि 21मार्च से मान्य होगा !
इसीदिन से चैत्र नवरात्र प्रतिपदा का आरम्भ भी हो जायेगा ! शास्त्रों के अनुसार इसी तिथि को सत्ययुग का आरम्भ भी हुआ था, इसलिए इसदिन को
स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है ! इसदिन दिनभर के किये गये जप-तप, पूजा-पाठ, दान-पुण्य का फल अक्षुण रहता है ! सभी मांगलिक कार्यों, श्राद्ध, तर्पण,
पिंडदान आदि का संकल्प करते समय वर्ष पर्यन्त ''कीलक'' नामक संवत् का उच्चारण किया जायेगा ! संवत् में वर्षा की स्वामिनी रोहिणी का वास समुद्र
में रहेगा जिसके फलस्वरूप वर्षा अधिक होगी धान्यादि की पैदावार प्रचुर मात्रा में रहेगी ! संवत् का वाहन महिष तथा वास माली के घर रहेगा ! जिसका
फल मिलाजुला किन्तु सकारात्मक रहेगा ! वर्ष के दशाधिकारियों में बृहस्पति एवं चन्द्र को तीन-तीन, शनि के पास दो और मंगल तथा बुध को एक-एक
अधिकार मिला हुआ है जो जनमानस के लिए शुभ संकेत है !  वर्ष पर्यन्त पूर्ण प्रशासन शनि और मंगल के पास रहेगा इसलिए अनुशासन की दृष्टि से
ये साल जाना जाएगा ! शनिदेव मृत्युलोक के न्यायदाता है इसलिए इसवर्ष अन्य वर्षों की अपेक्षा न्यायिक प्रणाली अधिक विश्वसनीय रहेगी ! कर्क लग्न
की संवत् की कुंडली में केन्द्र और त्रिकोण में कुल सात ग्रह हैं जो देश का सकल घरेलु उत्पाद मजबूती के साथ तो बढ़ेगा ही साथ महँगाई दर में भी
गिरावट आएगी, परन्तु प्राकृतिक आपदाओं जैसे आँधी-तूफ़ान, महामारी का वर्चस्व कायम रहेगा ! शनि और मंगल के प्रभाव से विश्वभर में भारत की
संप्रभुता, एकता, अखंडता का संकल्प बरकार रखने में सरकार को कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ेगा ! इन्हीं योगों के फलस्वरूप जेल में कुमार्गियों, भ्रष्ट
नेताओं और अफसरों की संख्या बढ़ेगी ! संवत् के मध्य 17 जून से 16 जुलाई तक मलमास/पुरुषोत्तम रहेगाजिसमें भगवान विष्णु की पूजा आराधना
सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त आदि का पाठ करना उत्तम रहेगा लेकिन शादी-विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश यज्ञोपवीत आदि कार्य वर्जित रहेंगें ! पं जयगोविन्द शास्त्री


Monday 16 March 2015

'सूर्य का मीन राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास आरम्भ'
भगवान सूर्य 14 मार्च की मध्यरात्रि पश्च्यात 04 बजकर 18 मिनट पर मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं | इस राशि पर सूर्य 14 अप्रैल दोपहर 01 बजकर 45 मिनट
तक रहेंगें | इनके मीन राशि में पहुचते ही उग्र 'खरमास' आरम्भ हो जाएगा, जिसके परिणाम स्वरुप शादी-विवाह और अन्य सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग
जाएगा | सूर्य को सृष्टि की आत्मा कहा गया है जीव की उत्पत्ति में भी इनका अहम योगदान रहता है, शास्त्र कहते हैं कि 'सूर्य रश्मितो जीवोऽभि जायते' अर्थात
सूर्य की किरणों से ही जीव की उत्पत्ति होती है | इस यात्रा के समय सूर्यदेव के साथ विष्णु और विश्वकर्मा दो देव, जमदग्नि और विश्वामित्र दो ऋषि, काद्रवेय और
कम्बलाश्वतर दो नाग, सूर्यवर्चा और धृतराष्ट नामक दो गन्धर्व साथ चलेंगें | अपनी सुंदरता से बड़े बड़े योगियों-ऋषियों का मन हरण करलेने वाली तिलोत्तमा और
रम्भा नाम की दो अप्सरायें भी सूर्य की यात्रा में मनोरंजन हेतु साथ चलेंगी | साथ ही ऋतजित और सत्यजित दो महाबलवान सारथी तथा ब्रह्मोपेत और यज्ञोपेत
नामक दो राक्षस भी सेवा हेतु साथ-साथ रहेंगे |ये सभी देव-दानव अपने अतिशय तेज के प्रभाव से सूर्य को और भी तेजवान बनाते हैं | चारों वेद और ऋषिगण अपने
बनाए गये वाक्यों से सूर्य की स्तुति करते हुए साथ चलेंगें | इस प्रक्रार अपने रथ पर चलते हुए सूर्य सातो द्वीपों और सातों समुद्रों समेत सृष्टि का भ्रमण करते हुए
दिन-रात्रि का निर्माण करते हैं | आदिकाल से सूर्य सभी बारह राशियों के स्वामी थे ! बाद में इन्होंने एक राशि का अधिपति चंद्रमा को और मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और
शनि को दो दो राशियों का अधिपति बना दिया ! सभी राशियों की स्वामी सिंह राशि के अधिपति स्वयं रहे | इनकी आराधना अथवा जल का अर्घ्य देने से जातकों
की जन्मकुंडलियों के सूर्यजनित दोष नष्ट हो जाते हैं | जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में सूर्य नीच राशिगत हों, बाल्या अथवा बृद्धा अवस्था में हों ,या जिनका जन्म
अमावस्या या संक्रांतिकाल में हुआ हो, जिनकी जन्मकुंडलियों में अधिकतर ग्रह कमजोर, नीच, शत्रुक्षेत्री हों जो मारकेश और शनि की शाढ़ेसाती से ग्रसित हों, वै सभी
जातक भगवान सूर्य का षडाक्षर मंत्र 'ॐ नमः खखोल्काय' का जप करके सभी कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं | सूर्य में पूर्व जन्मों के सभी पापों का शमन करने की
शक्ति है अतः इनका पूर्व के जन्मों में किया गया पापनाशक मंत्र 'ॐ सूर्यदेव महाभाग ! त्र्योक्य तिमिरापह | मम पूर्वकृतं पापं क्षम्यतां परमेश्वरः || पढ़ते हुए प्रतिदिन
प्रातःकाल लाल सूर्य के समय सूर्य नमस्कार करने और अर्घ्य देने से आयु, विद्या-बुद्धि और यश की प्राप्ति होती है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 12 March 2015

अब बृश्चिक राशि में शनिदेव हुए वक्री
शनिदेव 14 मार्च शनिवार की रात्रि 08 बजकर 21 मिनट पर वर्तमान बृश्चिक राशि की 10 अंश 51 कला और 32 विकला का भोग करने के पश्च्यात वक्री हो रहे हैं, इस
अवधि में ये 04 माह 19 दिनोंतक वक्रगति से चलते हुए भी राशि परवर्तन नहीं करेंगें और 02 अगस्त को दोपहर 11 बजकर 20 मिनट पर 04 अंश 12 कला तक भोगने
के पश्च्यात मार्गी हो जायेंगें ! भगवान शिव द्वारा शनिदेव को मृत्युलोक के प्राणियों का दंडाधिकारी नियुक्त किया गया है इसलिए शनि प्राणियों के जीवित रहते हुए ही
उनके शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार दंड का निर्धारण करते हैं और इसी जन्म में उन्हें दण्डित भी करते हैं ! शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, श्याम वर्ण, वायु प्रकृति प्रधान हैं, मकर
और कुंभ राशि के स्वामी शनि तुला राशि पर उच्च और मेष राशि में नीच संज्ञक होते हैं ! इनका वक्री होना बृश्चिक राशि वालों के लिए तो कुछ अशुभ रहेगा ही साथ ही
शासन सत्ता अथवा सरकारों के लिए अशांति कारक रहेगा ! सरकारों के मध्य आपसी सहमति बनाना भी कठिन रहेगा ! सभी राशियों पर शनि की वक्रगति का क्या असर
रहेगा, ? एवं क्या सावधानी बरतनी चाहिए. ? इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं !
मेष - स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें, षड्यंत्र से बचें, वाहन सावधानी से चलायें ! बृषभ - पति/पत्नी आपसी कलह से बचें, व्यापार में लेन-देन के प्रति सजग रहें !
मिथुन - ऋण-रोग से बचें, शत्रुओं पर विजय, कोर्ट-कचहरी के मामलें आपके पक्ष में ! कर्क- प्रेम सम्बन्धों से निराशा, संतान और शिक्षा के प्रति लापरवाह ना बनें !
सिंह - पारिवारिक अशांति, मानसिक उलझन, सामान चोरी होने का भय ! कन्या - क्रोध बृद्धि, भाईयों में मतभेद, कार्य बाधा, सफलता मिलने में देरी !
तुला - वाणी पर नियंत्रण रखें, नेत्र विकार से बचें, आकस्मिक लाभ के योग !बृश्चिक - अजीब सा भय, स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल, दूसरों के लिए अशुभ कहने से बचें !
धनु - अशुभ समाचार से कष्ट, व्यर्थ भागदौड़ और यात्राओं अधिक व्यय ! मकर - परिवार के बड़े सदस्य के लिए हानि, लाभ मार्ग प्रसस्त होंगें ! स्वास्थ के प्रति सजग रहें !
कुंभ - कार्य-व्यापार में मंदी, नौकरी-पेशा वालों के लिए स्थान परिवर्तन के योग ! मीन - जल्दबाजी के निर्णय परेशानी का सबब, धार्मिक कार्यों-यात्राओं पर अधिक व्यय !
वक्री शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के उपाय - शनिदेव उन्हीं को अधिक परेशान करते हैं जो दिन का अधिक समय दूसरों को परेशान करने अथवा हानि पहुचाने में लगे
रहते हैं, इसलिए अपने आचरण में सुधार लायें ! माता-पिता एवं परिवार के अन्य बुजुर्गों की सेवा करें ! सत्कर्मों के प्रति लगाव और आचरण में सुधार ही शनि के अशुभ
प्रभाव से बचने के सरल उपाय हैं ! पीपल एवं शमीवृक्ष का आरोपण करना भी अतिशुभ फलदाई रहेगा ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 5 March 2015

!!रंगों से संवारें अपना जीवन!!

!!होली के दिन अग्नि की पूजा !!

Monday 23 February 2015

मित्रों सुप्रभात ! रुद्राभिषेक करने अथवा वैदिक विद्वानों द्वारा करवाने से क्या लाभ होता है, इस विषय पर मेरा आलेख आज ही हिन्दुस्तान हिंदी समाचार पत्र के धर्मक्षेत्रे
पेज पर पढ़ सकते हैं !
शास्त्र कहते हैं कि शिवः अभिषेक प्रियः ! अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है ! ब्रह्म का बिग्रह रूप ही शिव हैं, उन शिव के अंतस्थल में योगियों और आत्माओं का
जो सूक्ष्म तत्व है वही रूद्र हैं ! 'रुतम्-दुःखम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्रः' अर्थात जो सभी प्रकार के 'रुत' दुखों को विनष्ट ही करदेते हैं वै ही रूद्र हैं ! ईश्वर, शिव, रूद्र, शंकर,
महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं ! इन शिव की शक्ति शिवा हैं इनमें सतोगुण जगत्पालक विष्णु एवं एवं रजोगुण श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं ! श्वास वेद हैं !
सूर्य चन्द्र नेत्र हैं ! वक्षस्थल तीनों लोक और चौदह भुवन हैं विशाल जटाओं में सभी नदियों पर्वतों और तीर्थों का वास है जहां श्रृष्टि के सभीऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्या
रत रहते हैं ! वेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मा ईश्वर शिव के श्वाँस से विनिर्गत हुए हैं इसीलिए वेद मन्त्रों के द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप,
यज्ञ आदि करके प्राणी शिव की कृपा सहजता से प्राप्त करलेता है ! रुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के पश्च्यात् प्राणी को फिर किसी भी पूजा की
आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि- ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, अर्थात- ब्रह्मा विष्णु भी रूद्रमय ही हैं ! शिवपुराण के अनुसार वेदों का सारतत्व, 'रुद्राष्टाध्यायी' है जिसमें आठ अध्यायों
में कुल 176 मंत्र हैं, इन्हीं मंत्रो के द्वारा त्रिगुण स्वरुप रूद्र का पूजनाभिषेक किया जाता है ! रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के 'शिवसंकल्पमस्तु' आदि मंत्रों के द्वारा
समस्त कार्य के निर्विघ्नता से संपन्न कराने के लिए विघ्नहरता श्रीगणेश' का स्तवन किया गया है, द्वितीय अध्याय के पुरुषसूक्त मन्त्रों के द्वारा में चराचर जगत के समस्त
प्राणियों का भरण-पोषण करने वाले भगवान विष्णु' के विराटरूप का स्तवन है ! तृतीय अध्याय के वेद मन्त्रों द्वारा पद एवं प्रभुता प्रदान करने वाले देवराज 'इंद्र' का तथा चतुर्थ

अध्याय में दिव्य ज्योति, आत्मज्ञान, यश और ऐश्वर्य प्रदाता भगवान 'सूर्य' का स्तवन है ! पंचम अध्याय तो दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों के विनाशक स्वयं रूद्र ही है !
छठे अध्याय के मन्त्रों द्वारा मन-मष्तिष्क एवं मातृ सुखों के प्रदाता 'सोम' का स्तवन है, इसीप्रकार सातवें अध्याय में उत्तम स्वास्थ्य तथा पाँचों प्रकार की प्राणवायु (प्राण, व्यान,

उदान, समान, अपान )निर्वाध गति से चलती रहे इसके लिए 'मरुत' का स्तवन किया गया है ! जीवों में अग्नितत्व बराबर बना रहे इसके लिए आठवें अध्याय के मन्त्रों द्वारा

'अग्निदेव' का स्तवन किया गया है ! अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है ! तभी 'रुद्राभिषेक' करने से समस्त देवी-देवताओं का भी अभिषेक
करने का फल उसी क्षण मिल जाता है ! रुद्राभिषेक में श्रृष्टि की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने की शक्ति है अतः अपनी आवश्यकता अनुसार अलग-अलग पदार्थों से रुद्राभिषेक
करके प्राणी इच्छित मनोरथ पूर्ण कर सकता है ! इनमें दूध से पुत्र प्राप्ति, गन्ने के रस से यश मनोनुकूल पति/पत्नी की प्राप्ति, शहद से कर्ज मुक्ति, कुश एवं जल से रोग मुक्ति,

पंचामृत से अष्टलक्ष्मी तथा तीर्थों के जल से मोक्ष की प्राप्ति होती है सभी बारह ज्योतिर्लिंगों पर 'रूद्रभिषेक' करने वाले प्राणी जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर शिवलोक चले
जाते हैं ! रुद्राभिषेक करने ग्रह-गोचर अनुकूल होने लगते हैं बिगड़े काम बनने लगते हैं ! नकारत्मक ऊर्जा हमेशा के लिए घर से बहुत दूर चली जाती है ! पं जयगोविंद शास्त्री