Sunday 27 September 2015

पितृपक्ष पर्व 28 सितंबर से
अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा प्रकटकर आशीर्वाद प्राप्ति का पवित्रपर्व श्राद्ध 28 सितंबर सोमवार से आरम्भ हो रहा है, इसदिन प्रतिपदा तिथि सुबह 08 बजकर 20 मिनट पर ही आरंभ हो रही है, अतः प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध इसीदिन दोपहर 11बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक के मध्य करना शुभ रहेगा | शास्त्रों-पुराणों में पितृों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पितृो वै जनार्दनः, पितृो वै वेदाः, पितृो वै ब्रह्मः, पितृ ही जनार्दन हैं, पितृ ही वेद है, पितृ ही ब्रह्म हैं, अतः जन्म-जन्मान्तर तक अनेकों योनियों में भटकते हुए जीव जब मनुष्य योनि में आता है तो उसे पितृरुपी जनार्दन के प्रतिश्राद्ध-तर्पण करने का अवसर मिलता है जिससे उसे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी होनेवाले जन्मों में उत्तम लोक और उत्तम योनि प्राप्त हो | जो मनुष्य वर्ष पर्यन्त दान-पुण्य, पूजा-पाठ आदि नहीं करते वै भी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में केवल अपने पितृों का श्राद्ध-तर्पण करके ईष्टकार्यसिद्धि एवं उन्नति प्राप्त कर सकते हैं | एक वर्ष में बारह महीने की बारह अमावस्यायें, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारम्भ की चारों तिथियाँ, मनुवों के आरम्भ की चौदह मन्वादि तिथियाँ, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ, पांच अष्टका, पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने के 96 अवसर हैं जिनमें मनुष्य अपने पूर्जवों के प्रति श्राद्ध तर्पण करके पितृदोष से मुक्ति पा सकता है | जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में पितृदोष हो, उनके लिए तो यह अवसर वरदान की तरह है क्योंकि इन्हीं दिनों पितृ पृथ्वी पर पधारते हैं | श्राद्ध का समय आ गया है ऐसा विचार करके पितृ अपने-अपने कुलों में मन के सामान तीव्र गति से आ पहुचते हैं, और जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है,उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं, उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पुनः पितृलोक चले जाते हैं | किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो श्राद्धपक्ष में उसी तिथि के आने पर अपने पितृ का श्राद्ध करें | पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में करें | एकादशी में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध, शस्त्र, आत्म हत्या, विष, वाहन दुर्घटना,सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप ,वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु से आक्रमण, फांसी लगाकर मृत्य, ज्वरप्रकोप, क्षयरोग, हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले पूर्जवों का श्राद्ध चतुर्दशी को करें | जिन पूर्जवों की तिथि ज्ञात न हो एवं मृत्यु पश्च्यात अंतिम संस्कार न हुआ हो उनका श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को करना चाहिए | सभी पितृों के स्वामी भगवान् विष्णु के शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उतपत्ति हुई है, अतः तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करें |
 पं जय गोविन्द शास्त्री