Thursday 14 May 2015

शनैश्चर जयंती १७ मई को
मृत्युलोक के दंडाधिकारी शनिदेव का जन्मोत्सव पर्व प्रत्येक वर्ष में ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है | पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका जन्म
सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया से हुआ, शनिदेव जब माँ के गर्भ में थे तब माँ छाया भगवान शिव की घोर तपस्या में लीन थी उन्हें अपने खान-पान तक की सुध
नहीं थी | छाया के तप के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु शनि भी जन्म लेने के पश्च्यात पूर्णतः शिवभक्ति में लीन रहने लगे एकदिन उन्होंने सूर्यदेव से कहा कि पिता
श्री हर बिभाग में आपसे सात गुना ज्यादा होना चाहता हूँ, यहाँतक कि आपके मंडल से मेरा मंडल सात गुना अधिक हो, मुझे आपसे अधिक सात गुना शक्ति
प्राप्त हो, मेरे वेग का कोई सामना नही कर पाये, चाहे वह देव, असुर, दानव, या सिद्ध साधक ही क्यों न हो | आपके लोक से मेरा लोक सात गुना ऊंचा रहे,
मुझे मेरे आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन हों और मैं भक्ति-ज्ञान से पूर्ण हो जाऊं | पुत्र शनि के उच्च विचारों से प्रसन्न हो सूर्यदेव ने कहा वत्स !
तुम अविमुक्त क्षेत्र काशी चले जाओ और वहीँ शिव की तपस्या करो तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगें ! पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर शनिदेव काशी गये और
शिवलिंग बनाकर अखण्ड शिव आराधना करने लगे | तपस्या से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और उन्हें ग्रहों में सर्वोपरि स्थान तो दिया ही साथ ही मृत्युलोक
का न्यायाधीश भी नियुक्त किया तथा न्यायिक प्रक्रिया का कठोरता से पालन करने के लिए इनके नाम की शाढेसाती और ढैया का वरदान भी दिया दिया
इसमें शाढेसाती की अवधि सत्ताईस सौ दिन और ढैया की अवधि नौ सौ दिन घोषित की | तबसे लेकर आजतक शनिदेव की ढैया और साढ़ेसाती का डर लोंगों
में व्याप्त है जिसका जीवन में शुभाशुभ प्रभाव व्यक्ति के आचरण और कर्म के अनुसार पड़ता है पिता सूर्य ने इन्हें मकर और कुंभ राशि के साथ-साथ अनुराधा,
पुष्य एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का अधिपति बनाया | शनिदेव ने जिस शिवलिंग की स्थापना की थी आज वही नवें ज्योतिर्लिंग 'श्रीकाशीविश्वनाथ' के नाम से जाने
जाते हैं ! भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए प्राणियों को शनि स्तोत्र, शनिकवच, शनि के वैदिक मंत्र का पाठ करना चाहिए अपने बड़ों के प्रति सम्मान रखना
चाहिए अहिंसा, उदारता, दयालुता, दया और सेवाभाव रखना ही शनिदेव की कृपा पाने के सरल उपाय हैं ! इनके जन्मदिन पर वस्त्र और अन्नदान का विशेष महत्व
रहता है इसदिन शमी अथवा पीपल के वृक्ष का रोपण करने नौ ग्रहों से सम्बंधित सभी कष्ट दूर हो जाते हैं | पं जयगोविन्द शास्त्री

No comments:

Post a Comment