Thursday 5 June 2014



                 'त्रिबिध तापों से मुक्ति देने वाली निर्जला एकादशी 09 जून को'
चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ एवं अक्षुणफल प्रदान करने वाली भीमसेनी एकादशी 09 जून सोमवार को है, ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की इस एकादशी
को 'अपरा' और 'निर्जला' एकादशी नामों से भी जाना जाता है | पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी को निर्जल व्रत रखते हुए परमेश्वर विष्णु की
भक्तिभाव से पूजा-आराधना करने से प्राणी समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त होता है श्रीश्वेतवाराह कल्प के आरंभ में देवर्षि
नारद की 'श्रीविष्णु' भक्ति देख ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए | नारद ने आग्रह किया कि हे ! परम पिता मुझे ऐसा कोई मार्ग बतायें जिससे मै
श्री विष्णुके चरणकमलों में स्थान पा सकूं ! पुत्र नारद का नारायण प्रेम देख ब्रह्मा जी श्रीविष्णु की प्रिया 'अपरा' की तिथि,'एकादशी' को निर्जल
व्रत करने का सुझाव दिया, नारद जी प्रसन्नचित्त होकर एक हजार वर्षतक 'निर्जल' रहकर यह कठोर व्रत किया !
कुछ वर्षों बाद तपस्या के मध्य ही उन्हें अपने चारों तरफ उन्हें नारायण ही नारायण दिखने लगे, परमेश्वर की इस माया से वै भ्रम में पड़ गए कि
कहीं यही विष्णुलोक तो नहीं तभी उन्हें भगवान श्रीविष्णु का दर्शन हुआ, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति
का वरदान देते हुए अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया ! तभी से इस निर्जल व्रत का प्रचलन आरम्भ हुआ ! एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है इसलिए
इसदिन जप-तप पूजा पाठ करने से प्राणी श्रीविष्णु का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है ! इस व्रत को देव 'व्रत'
भी कहा जाता है क्योंकि सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि अपनी रक्षा और श्रीविष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी
का व्रत रखते हैं पौराणिक मान्यता है कि एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों को शमन करने की शक्ति होती है ! इसदिन किसी भी तरह
का पापकर्म करने से बचने का प्रयास करें ही साथ ही मासं, मदिरा, तथा अन्य तामसी पादार्थों के सेवन से भी बचना चाहिए !
वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में भगवान शिव के अंशावतार महर्षि व्यास ने इस निर्जला एकादशी के व्रत के महत्व को पांडवों को बताया था,
इस कथा के पीछे भी एक घटना है-कि जब सर्वज्ञ वेदव्यास पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली
भीम ने पूछा कि देव ! मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है।
तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा ? महर्षि व्यास ने कहा, नहीं वत्स ! तुम ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष
की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो तो तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों काफल प्राप्त होगा। और तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त
कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इस सलाह पर भीम भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। तभी से वर्ष भर की चौबीस एकादशियों का
पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में भीमसेनी एकादशी नाम दिया गया गया ! इस दिन जो प्राणी स्वयं निर्जल रहकर
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करता है वह जन्म जन्मांतर के पापों से छुटकारा पाते हुए गोलोक वासी होता है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

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