मानसिक विकारों और कुष्ट रोगों से मुक्ति दिलाती है, 'योगिनी एकादशी'
परमेश्वर श्री विष्णु ने मानवकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों को मिलाकर कुल छबीस एकादशियों को प्रकट किया | कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली इन एकादशियों के नाम और उनके गुणों के अनुसार ही उनका नामकरण भी किया | इनमें उत्पन्ना, मोक्षा, सफला, पुत्रदा,षट्तिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, निर्जला, देवशयनी और देवप्रबोधिनी आदि हैं | सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने का सामर्थ्य हैं इनकी पूजा-आराधना करनेवालों को किसी और पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि, ये अपने भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति कराकर उन्हें विष्णुलोक पहुचाती हैं | इनमे 'योगिनी' एकादशी तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्मरोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है | पद्मपुराण के अनुसार 'योगिनी' एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के समान है |साधक को इसदिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को 'ॐ नमोऽभगवते वासुदेवाय' मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चंदन, जनेऊ गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, ताम्बूल, नारियल आदि अर्पित करके कर्पूर से आरती उतारनी चाहिए | योगिनी एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप,गुण और यश देने वाली है | इस एकादशी के संदर्भ में पद्मपुराण में एक कथा भी है जिसमे धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ ! अलकापुरी में राजाधिराज महान शिवभक्त कुबेर के यहाँ हेममाली नाम वाल यक्ष रहता था | उसका कार्य नित्यप्रति भगवान शंकर के पूजनार्थ मानसरोवर से फूल लाना था | एक दिन जब पुष्प लेकर आरहा था तो मार्ग से कामवासना एवं पत्नी 'विशालाक्षी' के मोह के कारण अपने घर चला गया और रतिक्रिया में लिप्त होने के कारण उसे शिव पूजापुष्प के ने पुष्प पहुचाने की बात याद नही रही | अधिक समय व्यतीत होनेपर कुबेर क्रोधातुर होकर उसकी खोज के लिए अन्य यक्षों को भेजा | यक्ष उसे घर से दरबार में लाये उसकी बात सुनकर क्रोधित कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया | शाप से कोढ़ी होकर हेम माली इधर-उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ॠषि के आश्रम में जा पहुँचा और करुणभाव से अपनी व्यथा बताई | ॠषि ने अपने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और उसके सत्यभाषण से प्रसन्न होकर योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी | हेममाली ने व्रत का आरम्भ किया और व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया | पं जयगोविन्द शास्त्री
परमेश्वर श्री विष्णु ने मानवकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों को मिलाकर कुल छबीस एकादशियों को प्रकट किया | कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली इन एकादशियों के नाम और उनके गुणों के अनुसार ही उनका नामकरण भी किया | इनमें उत्पन्ना, मोक्षा, सफला, पुत्रदा,षट्तिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, निर्जला, देवशयनी और देवप्रबोधिनी आदि हैं | सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने का सामर्थ्य हैं इनकी पूजा-आराधना करनेवालों को किसी और पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि, ये अपने भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति कराकर उन्हें विष्णुलोक पहुचाती हैं | इनमे 'योगिनी' एकादशी तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्मरोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है | पद्मपुराण के अनुसार 'योगिनी' एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के समान है |साधक को इसदिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को 'ॐ नमोऽभगवते वासुदेवाय' मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चंदन, जनेऊ गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, ताम्बूल, नारियल आदि अर्पित करके कर्पूर से आरती उतारनी चाहिए | योगिनी एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप,गुण और यश देने वाली है | इस एकादशी के संदर्भ में पद्मपुराण में एक कथा भी है जिसमे धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ ! अलकापुरी में राजाधिराज महान शिवभक्त कुबेर के यहाँ हेममाली नाम वाल यक्ष रहता था | उसका कार्य नित्यप्रति भगवान शंकर के पूजनार्थ मानसरोवर से फूल लाना था | एक दिन जब पुष्प लेकर आरहा था तो मार्ग से कामवासना एवं पत्नी 'विशालाक्षी' के मोह के कारण अपने घर चला गया और रतिक्रिया में लिप्त होने के कारण उसे शिव पूजापुष्प के ने पुष्प पहुचाने की बात याद नही रही | अधिक समय व्यतीत होनेपर कुबेर क्रोधातुर होकर उसकी खोज के लिए अन्य यक्षों को भेजा | यक्ष उसे घर से दरबार में लाये उसकी बात सुनकर क्रोधित कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया | शाप से कोढ़ी होकर हेम माली इधर-उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ॠषि के आश्रम में जा पहुँचा और करुणभाव से अपनी व्यथा बताई | ॠषि ने अपने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और उसके सत्यभाषण से प्रसन्न होकर योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी | हेममाली ने व्रत का आरम्भ किया और व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया | पं जयगोविन्द शास्त्री
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